कपूर(Camphor)को संस्कृत में कर्पूर कहते हैं।यह एक स्वेत रंग का उड़नशील ,तीखी गंध युक्त एवं अत्यंत ज्वलनशील वानस्पतिक पदार्थ है | हिन्दू धर्म पूजा पद्धति में कपूर का विशेष स्थान है। पूजा आरती के लिए इसका सर्वाधिक प्रयोग होता है कपूर को जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। कपूर दूषित वायु से फैलने वाले रोगों से बचाने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के कीड़े मकोड़ो को भी आने से रोकता है।
कपूर के प्रकार (Types of Camphor)
प्रमुखतः कपूर दो प्रकार के उपयोग में लाए जाते है |
१) प्राकृतिक कपूर( पेड़ों से प्राप्त ) २) कृत्रिम कपूर (रासायनिक प्रक्रिया से प्राप्त )
१) प्राकृतिक कपूर( पेड़ों से प्राप्त ) – भीमसेनी कपूर की पहचान, भीमसेनी कपूर एक प्रकार का प्राकृतिक कपूर है यह Dryobalanops अरोमाटिका नामक पौधे से प्राप्त होता है पेड़ का बायोलॉजिकल नाम Cinnamomum camphora (सिनामोमम कैम्फोरा) है। इस वृक्ष के काष्ठ खोलो पत्तियों से आसवन विधि द्वारा श्वेत एवं अर्धपारदर्शक भीमसेनी कपूर प्राप्त किया जाता है
कपूर का पौधा हवा में मौजूद सल्फरडाइऑक्साइड को सोख लेता है। पीपल के पत्ते जैसा कपूर का यह पौधा बहुत तेजी से और कम पानी में भी बढ़ता है।कपूर का पेड़ 50 से 100 फीट से भी ऊंचे आकार का पाया जाता है। कपूर के बीजों से निकलने वाला तेल एरोमाथेरेपी (सुगंधित तेल की मालिश) में काम आता है।
२) कृत्रिम कपूर (रासायनिक प्रक्रिया से प्राप्त ) – यह रासायनिक तरीके से निर्मित कपूर है इस कपूर का फार्मूला C10H16O है।
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कपूर के गुण (Properties of Camphor)
- गठिया और जोड़ों का दर्द में फायदेमंद
- मुहाँसे, दाग-धब्बे दूर करने में फायदेमंद
- जल जाने पर कपूर का उपयोग लाभदायक
- बालों के लिए नारियल तेल में कपूर फायदेमंद
- सिर दर्द में फायदेमंद
- मुंह के छालों में लाभ
सभी तरह का कपूर खाने योग्य नहीं होता है। खाने योग्य कपूर का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधि के निर्माण में किया जाता है। अतः कपूर का उपयोग सीधे न करके डॉक्टर एवं आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेकर आयुर्वेदिक औषधि के रूप में ही प्रयोग करना उचित होता है।
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