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भारतीय देसी गायों का नस्ल एवं महत्व

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    भारतीय देसी गायों का महत्व

    आज की हमारी भागदौड़ भरे जीवन में हमारे पास इतना समय नहीं है ।की आराम से बैठकर हर समय में कुछ हेल्दी फ़ूड खा सके। इसलिए  माना जाता है। की प्रातः आप कुछ हेल्दी भोजन करे  इसका प्रभाव आपके दिनभर की  दिनचर्या के साथ-साथ  स्वास्थ्य पर भी असर डालता  है। 

    इसलिए प्रातः उठकर कुछ हेल्दी भोजन का सेवन किया जाना चाइए हमारे आयुर्वेद में देसी A2 घी का बहुत महत्व बताया गया है। घी का सेवन करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना  रहता है। आयुर्वेद में घी को औषधिय गुणों का भंडार माना गया है। जिसके उपयोग से बहुत से रोग समाप्त हो जाते है।

    भारत में पाए जाने वाले देसी गाय की नस्ल

    थरपारकर, साहीवाल, काक्रेज, अमृत महल, राठी, गीर आदि ये देसी गायें हमारे भारत मे पायी जाती है।

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    देसी गाय का महत्व 

    प्रकृति ने जितनी चमत्कारी वस्तुएं हमे उपलब्ध करायी है उनमें से एक देसी गाय है। जो हम भारतवासी इसे गौमाता के नाम से सम्बोधन करते हैं। इसलिए गौमूत्र जैसी वस्तु जो मानवों के लिए बहुत ही लाभकारी है एवं देसी गाय का घी हमारे लिए अमृत के है। जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता करती है।

    देसी गाय के पीठ पर कंधा (कूबड़) निकला होता है। वह देसी गाय है और जिन गायों की पीठ सपाट होते है, वह जर्सी या विदेसी गाय है।

    गाय संपूर्ण शाकाहारी जीव है। अतः गाय जो भी वस्तु सेवन करती है। वह सारी वस्तु धरती से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी होती है जिसके कारण मिट्टी के सभी पोषक तत्व गाय के गोबर,गाय के मूत्र,गाय का दूध, गाय का घी,आदि हमे पोषक तत्व मिलते है। अतः गाय के शरीर से मिलने वाली हर एक वस्तु औषधि होती है।

    गाय का स्वभाव दूसरे और पशुओं की अपेक्षा बहुत अलग होता है। जैसे गाय के स्वभाव में वात्सल्य है, ऐसा वात्सल्य किसी और जीव में नही मिल सकता है। यह वात्सल्य प्रेम कुछ विशेष रस के कारण होता है। जिसका सीधा असर गाय की सभी दैनिक क्रियाओं पर पड़ता है। अर्थात गाय अपने जीवन मे जो भी खाती-पीती है। उसके पचन-पाचन में वात्सल्य के उन्ही रसों का प्रभाव होता है। जिसके कारण गाय के द्वारा छोड़े जाने वाले मूत्र गोबर,दूध,आदि में भी उसका असर होता है।

    भारत की गाय कम से कम 20 वर्ष जीवित रह सकती है और 20 सालो में कम से कम 16 बार माँ बन सकती है। वही विदेसी गाय 9 से 10 वर्ष जीवित रहती है और 9 से 10 वर्षों में 5 से 6 बार माँ बन सकती है।

    गाय का दूध,गाय का मूत्र, गाय का घी,व गाय के गोबर का थोड़ा सा रस गुड़ में मिलाकर यह पंचामृत बनता है। यह पंचामृत वात, पित, कफ, तीनो पर एक साथ कार्य करती है और बहुत ही लाभकारी प्रभाव छोड़ता है।

    कब्जियत के रोगों में १/२ कप गौमूत्र ३ से ४ दिन प्रातः-प्रातः खाली पेट पीने से लाभ होता है व पीत के सभी रोगों के लिए गौमूत्र जब पिये,उन समयों में देसी घी का सेवन अधिक करें।

    गौमूत्र की मालिस करने से त्वचा के सफेद धब्बे कम हो जाते हैं और खाज,खुजली एग्जिमा भी यह दूर करने में सहायता करता है।

    आधा कप गौमूत्र प्रातः सेवन करने से पहले बवासीर,बादी व खूनी ,भगन्दर अर्थराइटिस, जोड़ो का दर्द,उक्त रक्त दबाव,ह्रदयघात,कैंसर आदि के लिए लाभप्रद होता है।

    अगर आंखों के नीचे काले धब्बे है। तो गौ अर्क प्रतिदिन सुबह व शाम लगाने से काले धब्बे दूर होने लगते हैं।

     

    A2 देसी घी के लाभ Benefits of A2 Desi Cow Ghee

     

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